Surah Yaseen in hindi english arabic | सूरह यासीन शरीफ़ हिन्दी में

Surah Yaseen in hindi english arabic | सूरह यासीन शरीफ़ हिन्दी में

सूरह यासीन शरीफ़ कुरान की सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली सूरह है। इस सूरह का पाठ करने से धार्मिक शांति और मनोबल प्राप्त होता है। सूरह यासीन शरीफ़ का हिन्दी, अंग्रेजी और अरबी में अनुवाद उपलब्ध है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।

सूरह यासीन का परिचय

सूरह यासीन कुरान शरीफ की 36वीं सूरह है। इस शक्तिशाली सूरह में कुल 83 आयतें हैं और यह मक्का की सूरह है। सूरह यासीन का महत्व और विशेषताएं उसे कुरान की सबसे महत्वपूर्ण सूरहों में से एक बनाती हैं।

सूरह यासीन का महत्व

सूरह यासीन का महत्व इसलिए है क्योंकि यह कुरान की सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली सूरहों में से एक है। इसमें ईश्वरीय एकता, पैगम्बरों के आगमन, मौत और पुनरुत्थान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है। कुरान की सूरह यासीन को ‘कलब-उल-कुरान’ (कुरान का दिल) भी कहा जाता है।</p>

सूरह यासीन का उद्देश्य

यासीन सूरह का मतलब और उद्देश्य मुसलमानों को मार्गदर्शन देना और उन्हें अल्लाह के दिव्य संदेश से अवगत कराना है। यह सूरह यासीन सूरह की विशेषताओं के माध्यम से मुसलमानों को अल्लाह की एकता, दिव्यता और पुनरुत्थान के बारे में जागरूक करती है।

Surah Yaseen in hindi

सूरह यासीन का अरबी पाठ, हिन्दी अनुवाद और व्याख्या यहां प्रस्तुत की गई है। सूरह यासीन पाठ में मूल आयतों को अरबी भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जिससे आप इस शक्तिशाली सूरह का मूल रूप देख सकते हैं। सूरह यासीन का अनुवाद हिन्दी में दिया गया है, ताकि आप इसका भावार्थ समझ सकें। साथ ही, सूरह यासीन की व्याख्या में इस सूरह की विशेषताओं और महत्व पर चर्चा की गई है।

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम

1.यासीन

2. वल कुर आनिल हकीम

3. इन्नका लमिनल मुरसलीन

4. अला सिरातिम मुस्तकीम

5. तनजीलल अजीज़िर रहीम

6. लितुन ज़िरा कौमम मा उनज़िरा आबाउहुम फहुम गाफिलून

7. लकद हक कल कौलु अला अकसरिहिम फहुम ला युअ’मिनून

8. इन्ना जअल्ना फी अअ’ना किहिम अगलालन फहिया इलल अजक़ानि फहुम मुक़महून

9. व जअल्ना मिम बैनि ऐदी हिम सद्दव वमिन खलफिहिम सद्दन फअग शैनाहुम फहुम ला युबसिरून

10. वसवाउन अलैहिम अअनजर तहुम अम लम तुनजिरहुम ला युअ’मिनून

11. इन्नमा तुन्ज़िरू मनित तब अज़ ज़िकरा व खशियर रहमान बिल्गैब फबश्शिर हु बिमग फिरतिव व अजरिन करीम</p><p>12. इन्ना नहनु नुहयिल मौता वनकतुबु मा क़द्दमु व आसारहुम वकुल्ला शयइन अहसैनाहु फी इमामिम मुबीन

13. वज़ रिब लहुम मसलन असहाबल करयह इज़ जा अहल मुरसळून

14. इज़ अरसलना इलयहिमुस नैनि फकज जबूहुमा फ अज़ ज़ज्ना बिसा लिसिन फकालू इन्ना इलैकुम मुरसळून

15. कालू मा अन्तुम इल्ला बशरुम मिसळूना वमा अनजलर रहमानु मिन शय इन इन अन्तुम इल्ला तकज़िबुन

16. क़ालू रब्बुना यअ’लमु इन्ना इलैकुम लमुरसळून

17. वमा अलैना इल्लल बलागुल मुबीन

18. कालू इन्ना ततैयरना बिकुम लइल लम तनतहू लनरजु मन्नकूम वला यमस सन्नकुम मिन्ना अज़ाबुन अलीम

19. कालू ताइरुकुम म अकुम अइन ज़ुक्किरतुम बल अन्तुम क़ौमूम मुस रिफून

20. व जा अमिन अक्सल मदीनति रजुलुय यसआ काला या कौमित त्तबिउल मुरसलीन

21. इत तबिऊ मल ला यस अलुकुम अजरौ वहुम मुहतदून

22. वमालिया ला अअ’बुदुल लज़ी फतरनी व इलैहि तुरजऊन

23. अ अत्तखिज़ु मिन दुनिही आलिहतन इय युरिदनिर रहमानु बिजुर रिल ला तुगनि अन्नी शफ़ा अतुहुम शय अव वला यूनकिजून

24. इन्नी इज़ल लफी ज़लालिम मुबीन

25. इन्नी आमन्तु बिरब बिकुम फसमऊन

26. कीलद खुलिल जन्नह काल यालैत क़ौमिय यअ’लमून

27. बिमा गफरली रब्बी व जअलनी मिनल मुकरमीन

28. वमा अन्ज़लना अला क़ौमिही मिन बअ’दिही मिन जुन्दिम मिनस समाइ वमा कुन्ना मुनजलीन

29. इन कानत इल्ला सैहतौ वाहिदतन फइज़ा हुम् खामिदून

30. या हसरतन अलल इबाद मा यअ’तीहिम मिर रसूलिन इल्ला कानू बिही यस तहज़िउन

31. अलम यरौ कम अहलकना क़ब्लहुम मिनल कुरूनि अन्नहुम इलैहिम ला यर जिउन

32. वइन कुल्लुल लम्मा जमीउल लदैना मुह्ज़रून

33. व आयतुल लहुमूल अरज़ुल मैतह अह ययनाहा व अखरजना मिन्हा हब्बन फमिनहु यअ कुलून

34. व जअलना फीहा जन्नातिम मिन नखीलिव व अअ’नाबिव व फज्जरना फीहा मिनल उयून

35. लियअ’ कुलु मिन समरिही वमा अमिलत हु अयदीहिम अफला यशकुरून

36. सुब्हानल लज़ी ख़लक़ल अज़वाज कुल्लहा मिम मा तुमबितुल अरज़ू वमिन अनफुसिहिम वमिम मा ला यअलमून

37. व आयतुल लहुमूल लैल नसलखु मिन्हुन नहारा फइज़ा हुम् मुजलिमून

38. वश शमसु तजरि लिमुस्त कररिल लहा ज़ालिका तक़्दी रूल अज़ीज़िल अलीम

39. वल कमर कद्दरनाहु मनाज़िला हत्ता आद कल उरजुनिल क़दीम

40. लश शम्सु यमबगी लहा अन तुद रिकल कमरा वलल लैलु साबिकुन नहार वकुल्लुन फी फलकिय यसबहून

41. व आयतुल लहुम अन्ना हमलना ज़ुररिय यतहूम फिल फुल्किल मशहून

42. व खलकना लहुम मिम मिस्लिही मा यरकबून

43. व इन नशअ नुगरिक हुम फला सरीखा लहुम वाला हुम युन्क़जून

44. इल्ला रहमतम मिन्ना व मताअन इलाहीन

45. व इजा कीला लहुमुत तकू मा बैना ऐदीकुम वमा खल्फकुम लअल्लकुम तुरहमून

<p>46. वमा तअ’तीहिम मिन आयतिम मिन आयाति रब्बिहिम इल्ला कानू अन्हा मुअ रिजीन

47. व इज़ा कीला लहुम अन्फिकू मिम्मा रजका कुमुल लाहु क़ालल लज़ीना कफरू लिल लज़ीना आमनू अनुत इमू मल लौ यशाऊल लाहू अत अमह इन अन्तुम इल्ला फ़ी ज़लालिम मुबीन

48. व यकूलूना मता हाज़ल व’अदू इन कुनतुम सादिक़ीन

49. मा यन ज़ुरूना इल्ला सैहतव व़ाहिदतन तअ खुज़ुहुम वहुम यखिस सिमून

50. फला यस्ता तीऊना तौ सियतव वला इला अहलिहिम यरजिऊन

51. व नुफ़िखा फिस सूरि फ़इज़ा हुम मिनल अज्दासि इला रब्बिहिम यन्सिलून

52. कालू या वय्लना मम ब असना मिम मरक़दिना हाज़ा मा व अदर रहमानु व सदकल मुरसलून

53. इन कानत इल्ला सयहतव वहिदतन फ़ इज़ा हुम जमीउल लदैना मुहज़रून

54. फल यौम ला तुज्लमु नफ्नसु शय अव वला तुज्ज़व्ना इल्ला मा कुन्तुम तअ’मलून

55. इन्न अस हाबल जन्न्तिल यौमा फ़ी शुगुलिन फाकिहून

56. हुम व अज्वा जुहूम फ़ी ज़िलालिन अलल अराइकि मुत्तकिऊन

57. लहुम फ़ीहा फ़ाकिहतुव वलहुम मा यद् दऊन

58. सलामुन क़ौलम मिर रब्बिर रहीम

59. वम ताज़ुल यौमा अय्युहल मुजरिमून

60. अलम अअ’हद इलैकुम या बनी आदम अल्ला तअ’बुदुश शैतान इन्नहू लकुम अदुववुम मुबीन

61. व अनिअ बुदूनी हज़ा सिरातुम मुस्तक़ीम

62. व लक़द अज़ल्ला मिन्कुम जिबिल्लन कसीरा अफलम तकूनू तअकिलून

63. हाज़िही जहन्नमुल लती कुन्तुम तूअदून

64. इस्लौहल यौमा बिमा कुन्तुम तक्फुरून

65. अल यौमा नाख्तिमु अल अफ्वा हिहिम व तुकल लिमुना अयदीहिम व तशहदू अरजु लुहुम बिमा कानू यक्सिबून

66. व लौ नशाउ लता मसना अला अअ’युनिहिम फ़स तबकुस सिराता फ अन्ना युबसिरून

67. व लौ नशाउ ल मसखना हुम अला मका नतिहिम फमस तताऊ मुजिय यौ वला यर जिऊन

68. वमन नुअम मिरहु नुनक किसहु फिल खल्क अफला यअ’ किलून

69. वमा अल्लम नाहुश शिअ’रा वमा यम्बगी लह इन हुवा इल्ला जिक रुव वकुर आनुम मुबीन

70. लियुन जिरा मन काना हय्यव व यहिक क़ल कौलु अलल काफ़िरीन

71. अव लम यरव अन्ना खलक्ना लहुम मिम्मा अमिलत अय्दीना अन आमन फहुम लहा मालिकून

72. व ज़ल लल नाहा लहुम फ मिन्हा रकू बुहुम व मिन्हा यअ’कुलून

73. व लहुम फ़ीहा मनाफ़िउ व मशारिबु अफला यश्कुरून

74. वत तखजू मिन दूनिल लाहि आलिहतल लअल्लहुम युन्सरून

75. ला यस्ता तीऊना नस रहुम वहुम लहुम जुन्दुम मुह्ज़रून

76. फला यह्ज़ुन्का क़व्लुहुम इन्ना नअ’लमु मा युसिर रूना वमा युअ’लिनून

77. अव लम यरल इंसानु अन्ना खलक्नाहू मिन नुत्फ़तिन फ़ इज़ा हुवा खासीमुम मुबीन

78. व ज़रबा लना मसलव व नसिया खल्कह काला मय युहयिल इजामा व हिय रमीम

79. कुल युहयीहल लज़ी अनश अहा अव्वला मर्रह वहुवा बिकुलली खल किन अलीम

80. अल्लज़ी जअला लकुम मिनश शजरिल अख्ज़रि नारन फ़ इज़ा अन्तुम मिन्हु तूकिदून

81. अवा लैसल लज़ी खलक़स समावाती वल अरज़ा बिक़ादिरिन अला य यख्लुक़ा मिस्लहुम बला

Surah Yaseen in English

  1. Yaa-Seeen
  2. Wal-Qur-aanil-Hakeem
  3. Innaka laminal mursaleen
  4. ‘Alaa Siraatim Mustaqeem
  5. Tanzeelal ‘Azeezir Raheem
  6. Litunzira qawmam maaa unzira aabaaa’uhum fahum ghaafiloon
  7. Laqad haqqal qawlu ‘alaaa aksarihim fahum laa yu’minoon
  8. Innaa ja’alnaa feee a’naaqihim aghlaalan fahiya ilal azqaani fahum muqmahoon
  9. Wa ja’alnaa min baini aydeehim saddanw-wa min khalfihim saddan fa aghshai naahum fahum laa yubsiroon
  10. Wa sawaaa’un ‘alaihim ‘a-anzartahum am lam tunzirhum laa yu’minoon
  11. Innamaa tunziru manit taba ‘az-Zikra wa khashiyar Rahmaana bilghaib, fabashshirhu bimaghfiratinw-wa ajrin karee
  12. Innaa Nahnu nuhyil mawtaa wa naktubu maa qaddamoo wa aasaarahum; wa kulla shai’in ahsainaahu feee Imaamim Mubeen
  13. Wadrib lahum masalan Ashaabal Qaryatih; iz jaaa’ahal mursaloon
  14. Iz arsalnaaa ilaihimusnaini fakazzaboohumaa fa’azzaznaa bisaalisin faqaalooo innaaa ilaikum mursaloon
  15. Qaaloo maaa antum illaa basharum mislunaa wa maaa anzalar Rahmaanu min shai’in in antum illaa takziboon
  16. Qaaloo Rabbunaa ya’lamu innaaa ilaikum lamursaloon
  17. Wa maa ‘alainaaa illal balaaghul mubeen
  18. Qaaloo innaa tataiyarnaa bikum la’il-lam tantahoo lanar jumannakum wa la-yamassan nakum minnaa ‘azaabun aleem
  19. Qaaloo taaa’irukum ma’akum; a’in zukkirtum; bal antum qawmum musrifoon
  20. Wa jaaa’a min aqsal madeenati rajuluny yas’aa qaala yaa qawmit tabi’ul mursaleen
  21. Ittabi’oo mal-laa yas’alukum ajranw-wa hum muhtadoon
  22. Wa maa liya laaa a’budul lazee fataranee wa ilaihi turja’oon
  23. ‘A-attakhizu min dooniheee aalihatan iny-yuridnir
  24. Rahmaanu bidurril-laa tughni ‘annee shafaa ‘atuhum shai ‘anw-wa layunqizoon
  25. Inneee izal-lafee dalaa-lim-mubeen
  26. Inneee aamantu bi Rabbikum fasma’oon
  27. Qeelad khulil Jannnah; qaala yaa laita qawmee ya’lamoon
  28. Bimaa ghafara lee Rabbee wa ja’alanee minal mukrameen (End Juz 22)
  29. Wa maaa anzalnaa ‘alaa qawmihee mim ba’dihee min jundim minas-samaaa’i wa maa kunnaa munzileen
  30. In kaanat illaa saihatanw waahidatan fa-izaa hum khaamidoon
  31. Yaa hasratan ‘alal ‘ibaaad; maa ya’teehim mir Rasoolin illaa kaanoo bihee yastahzi ‘oon
  32. Alam yaraw kam ahlak naa qablahum minal qurooni annahum ilaihim laa yarji’oon
  33. Wa in kullul lammaa jamee’ul-ladainaa muhdaroon
  34. Wa Aayatul lahumul ardul maitatu ahyainaahaa wa akhrajnaa minhaa habban faminhu ya’kuloon
  35. Wa ja’alnaa feehaa jannaatim min nakheelinw wa a’naabinw wa fajjarnaa feeha minal ‘uyoon
  36. Li ya’kuloo min samarihee wa maa ‘amilat-hu aideehim; afalaa yashkuroon
  37. Subhaanal lazee khalaqal azwaaja kullahaa mimmaa tumbitul ardu wa min anfusihim wa mimmaa laa ya’lamoon
  38. Wa Aayatul lahumul lailu naslakhu minhun nahaara fa-izaa hum muzlimoon
  39. Wash-shamsu tajree limustaqarril lahaa; zaalika taqdeerul ‘Azeezil Aleem
  40. Walqamara qaddarnaahu manaazila hattaa ‘aada kal’ur joonil qadeem
  41. Lash shamsu yambaghee lahaaa an tudrikal qamara walal lailu saabiqun nahaar; wa kullun fee falaki yasbahoon
  42. Wa Aayatul lahum annaa hamalnaa zurriyatahum fil fulkil mashhoon
  43. Wa khalaqnaa lahum mim-mislihee maa yarkaboon
  44. Wa in nashaa nughriqhum falaa sareekha lahum wa laa hum yunqazoon
  45. Illaa rahmatam minnaa wa mataa’an ilaa heen
  46. Wa izaa qeela lahumuttaqoo maa baina aideekum wa maa khalfakum la’allakum turhamoon
  47. Wa maa ta’teehim min aayatim min Aayaati Rabbihim illaa kaanoo ‘anhaa mu’rideen
  48. Wa izaa qeela lahum anfiqoo mimmaa razaqakumul laahu qaalal lazeena kafaroo lillazeena aamanooo anut’imu mal-law yashaaa’ul laahu at’amahooo in antum illaa fee dalaalim mubeen
  49. Wa yaqooloona mataa haazal wa’du in kuntum saadiqeen
  50. Maa yanzuroona illaa saihatanw waahidatan ta’khuzuhum wa hum yakhissimoon
  51. Falaa yastatee’oona taw siyatanw-wa laaa ilaaa ahlihim yarji’oon
  52. Wa nufikha fis-soori faizaa hum minal ajdaasi ilaa Rabbihim yansiloon
  53. Qaaloo yaa wailanaa mam ba’asanaa mim marqadinaa; haaza maa wa’adar Rahmanu wa sadaqal mursaloon
  54. In kaanat illaa saihatanw waahidatan fa-izaa hum jamee’ul ladainaa muhdaroon
  55. Fal-Yawma laa tuzlamu nafsun shai’anw-wa laa tujzawna illaa maa kuntum ta’maloon
  56. Inna Ashaabal jannatil Yawma fee shughulin faakihoon
  57. Hum wa azwaajuhum fee zilaalin ‘alal araaa’iki muttaki’oon
  58. Lahum feehaa faakiha tunw-wa lahum maa yadda’oon
  59. Salaamun qawlam mir Rabbir Raheem
  60. Wamtaazul Yawma ayyuhal mujrimoon
  61. Alam a’had ilaikum yaa Baneee Aadama al-laa ta’budush Shaitaana innahoo lakum ‘aduwwum mubeen
  62. Wa ani’budoonee; haazaa Siraatum Mustaqeem
  63. Wa laqad adalla minkum jibillan kaseeraa; afalam takoonoo ta’qiloon
  64. Haazihee Jahannamul latee kuntum too’adoon
  65. Islawhal Yawma bimaa kuntum takfuroon
  66. Al-Yawma nakhtimu ‘alaaa afwaahihim wa tukallimunaaa aideehim wa tashhadu arjuluhum bimaa kaanoo yaksiboon
  67. Wa law nashaaa’u lata masna ‘alaaa aiyunihim fasta baqus-siraata fa-annaa yubsiroon
  68. Wa law nashaaa’u lamasakhnaahum ‘alaa makaanatihim famas-tataa’oo mudiyyanw-wa laa yarji’oon
  69. Wa man nu ‘ammirhu nunakkishu fil-khalq; afalaa ya’qiloon
  70. Wa maa ‘allamnaahush shi’ra wa maa yambaghee lah; in huwa illaa zikrunw-wa Qur-aanum mubeen
  71. Liyunzira man kaana haiyanw-wa yahiqqal qawlu ‘alal-kaafireen
  72. Awalam yaraw annaa khalaqnaa lahum mimmaa ‘amilat aideenaaa an’aaman fahum lahaa maali

Surah Yaseen in Arabic

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
1. يس
2. وَالْقُرْآنِ الْحَكِيمِ
3. إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ
4. عَلَىٰ صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ
5. تَنْزِيلَ الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ
6. لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَا أُنْذِرَ آبَاؤُهُمْ فَهُمْ غَافِلُونَ
7. لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلَىٰ أَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ
8. إِنَّا جَعَلْنَا فِي أَعْنَاقِهِمْ أَغْلَالًا فَهِيَ إِلَى الْأَذْقَانِ فَهُمْ مُقْمَحُونَ
9. وَجَعَلْنَا مِنْ بَيْنِ أَيْدِيهِمْ سَدًّا وَمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا فَأَغْشَيْنَاهُمْ فَهُمْ لَا يُبْصِرُونَ
10. وَسَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنْذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ
11. إِنَّمَا تُنْذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَخَشِيَ الرَّحْمَٰنَ بِالْغَيْبِ ۖ فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَأَجْرٍ كَرِيمٍ
12. إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي الْمَوْتَىٰ وَنَكْتُبُ مَا قَدَّمُوا وَآثَارَهُمْ ۚ وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ فِي إِمَامٍ مُبِينٍ
13. وَاضْرِبْ لَهُمْ مَثَلًا أَصْحَابَ الْقَرْيَةِ إِذْ جَاءَهَا الْمُرْسَلُونَ
14. إِذْ أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمُ اثْنَيْنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوا إِنَّا إِلَيْكُمْ مُرْسَلُونَ
15. قَالُوا مَا أَنْتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا وَمَا أَنْزَلَ الرَّحْمَٰنُ مِنْ شَيْءٍ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا تَكْذِبُونَ
16. قَالُوا رَبُّنَا يَعْلَمُ إِنَّا إِلَيْكُمْ لَمُرْسَلُونَ
17. وَمَا عَلَيْنَا إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ
18. قَالُوا إِنَّا تَطَيَّرْنَا بِكُمْ ۖ لَئِنْ لَمْ تَنْتَهُوا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَيَمَسَّنَّكُمْ مِنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ
19. قَالُوا طَائِرُكُمْ مَعَكُمْ ۚ أَئِنْ ذُكِّرْتُمْ ۚ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ مُسْرِفُونَ
20. وَجَاءَ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ يَسْعَىٰ قَالَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِينَ
21. اتَّبِعُوا مَنْ لَا يَسْأَلُكُمْ أَجْرًا وَهُمْ مُهْتَدُونَ
22. وَمَا لِيَ لَا أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ
23. أَأَتَّخِذُ مِنْ دُونِهِ آلِهَةً إِنْ يُرِدْنِ الرَّحْمَٰنُ بِضُرٍّ لَا تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلَا يُنْقِذُونِ
24. إِنِّي إِذًا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ
25. إِنِّي آمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ
26. قِيلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ ۖ قَالَ يَا لَيْتَ قَوْمِي يَعْلَمُونَ
27. بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُكْرَمِينَ
28. وَمَا أَنْزَلْنَا عَلَىٰ قَوْمِهِ مِنْ بَعْدِهِ مِنْ جُنْدٍ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا كُنَّا مُنْزِلِينَ
29. إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ خَامِدُونَ
30. يَا حَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِ ۚ مَا يَأْتِيهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ
31. أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِنَ الْقُرُونِ أَنَّهُمْ إِلَيْهِمْ لَا يَرْجِعُونَ
32. وَإِنْ كُلٌّ لَمَّا جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ
33. وَآيَةٌ لَهُمُ الْأَرْضُ الْمَيْتَةُ أَحْيَيْنَاهَا وَأَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُونَ
34. وَجَعَلْنَا فِيهَا جَنَّاتٍ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ وَفَجَّرْنَا فِيهَا مِنَ الْعُيُونِ
35. لِيَأْكُلُوا مِنْ ثَمَرِهِ وَمَا عَمِلَتْهُ أَيْدِيهِمْ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ
36. سُبْحَانَ الَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنْبِتُ الْأَرْضُ وَمِنْ أَنْفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُونَ
37. وَآيَةٌ لَهُمُ اللَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَإِذَا هُمْ مُظْلِمُونَ
38. وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَهَا ۚ ذَٰلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ
39. وَالْقَمَرَ قَدَّرْنَاهُ مَنَازِلَ حَتَّىٰ عَادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ
40. لَا الشَّمْسُ يَنْبَغِي لَهَا أَنْ تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا اللَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ ۚ وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ
41. وَآيَةٌ لَهُمْ أَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ
42. وَخَلَقْنَا لَهُمْ مِنْ مِثْلِهِ مَا يَرْكَبُونَ
43. وَإِنْ نَشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيخَ لَهُمْ وَلَا هُمْ يُنْقَذُونَ
44. إِلَّا رَحْمَةً مِنَّا وَمَتَاعًا إِلَىٰ حِينٍ
45. وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّقُوا مَا بَيْنَ أَيْدِيكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ
46. وَمَا تَأْتِيهِمْ مِنْ آيَةٍ مِنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ
47. وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ أَنْفِقُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا أَنُطْعِمُ مَنْ لَوْ يَشَاءُ اللَّهُ أَطْعَمَهُ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ
48. وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ
49. مَا يَنْظُرُونَ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُونَ
50. فَلَا يَسْتَطِيعُونَ تَوْصِيَةً وَلَا إِلَىٰ أَهْلِهِمْ يَرْجِعُونَ
51. وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَإِذَا هُمْ مِنَ الْأَجْدَاثِ إِلَىٰ رَبِّهِمْ يَنْسِلُونَ
52. قَالُوا يَا وَيْلَنَا مَنْ بَعَثَنَا مِنْ مَرْقَدِنَا ۜ ۗ هَٰذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمَٰنُ وَصَدَقَ الْمُرْسَلُونَ
53. إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ
54. فَالْيَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَلَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ
55. إِنَّ أَصْحَابَ الْجَنَّةِ الْيَوْمَ فِي شُغُلٍ فَاكِهُونَ
56. هُمْ وَأَزْوَاجُهُمْ فِي ظِلَالٍ عَلَى الْأَرَائِكِ مُتَّكِئُونَ
57. لَهُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ وَلَهُمْ مَا يَدَّعُونَ
58. سَلَامٌ قَوْلًا مِنْ رَبٍّ رَحِيمٍ
59. وَامْتَازُوا الْيَوْمَ أَيُّهَا الْمُجْرِمُونَ
60. أَلَمْ أَعْهَدْ إِلَيْكُمْ يَا بَنِي آدَمَ أَنْ لَا تَعْبُدُوا الشَّيْطَانَ ۖ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ
61. وَأَنِ اعْبُدُونِي ۚ هَٰذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ
62. وَلَقَدْ أَضَلَّ مِنْكُمْ جِبِلًّا كَثِيرًا ۖ أَفَلَمْ تَ

63. هَٰذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ
64. اصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ
65. الْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلَىٰ أَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَا أَيْدِيهِمْ وَتَشْهَدُ أَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ
66. وَلَوْ نَشَاءُ لَطَمَسْنَا عَلَىٰ أَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَأَنَّىٰ يُبْصِرُونَ
67. وَلَوْ نَشَاءُ لَمَسَخْنَاهُمْ عَلَىٰ مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوا مُضِيًّا وَلَا يَرْجِعُونَ
68. وَمَنْ نُعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِي الْخَلْقِ ۖ أَفَلَا يَعْقِلُونَ
69. وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنْبَغِي لَهُ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ وَقُرْآنٌ مُبِينٌ
70. لِيُنْذِرَ مَنْ كَانَ حَيًّا وَيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكَافِرِينَ
71. أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا خَلَقْنَا لَهُمْ مِمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَا أَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مَالِكُونَ
72. وَذَلَّلْنَاهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ
73. وَلَهُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَمَشَارِبُ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ
74. وَاتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ آلِهَةً لَعَلَّهُمْ يُنْصَرُونَ
75. لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَهُمْ وَهُمْ لَهُمْ جُنْدٌ مُحْضَرُونَ
76. فَلَا يَحْزُنْكَ قَوْلُهُمْ ۘ إِنَّا نَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ
77. أَوَلَمْ يَرَ الْإِنْسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِنْ نُطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُبِينٌ
78. وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَنَسِيَ خَلْقَهُ ۖ قَالَ مَنْ يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ
79. قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنْشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ
80. الَّذِي جَعَلَ لَكُمْ مِنَ الشَّجَرِ الْأَخْضَرِ نَارًا فَإِذَا أَنْتُمْ مِنْهُ تُوقِدُونَ
81. أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَىٰ أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ ۚ بَلَىٰ وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ
82. إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَنْ يَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ
83. فَسُبْحَانَ الَّذِي بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ

Surah Yaseen in Urdu

خدا کے نام سے جو بڑا مہربان، نہایت رحم کرنے والا ہے۔
1. ہاں
2. اور حکمت والا قرآن
3. بے شک آپ رسولوں میں سے ہیں۔
4. سیدھے راستے پر
5. غالب اور رحم کرنے والے کا نزول
6. ایسی قوم کو ڈرانا جن کے باپ دادا کو ڈرایا نہیں گیا کیونکہ وہ غافل ہیں۔
7. بیشک ان ​​میں سے اکثر کے بارے میں بات سچ ہو چکی ہے، اس لیے وہ ایمان نہیں لاتے۔
8. بے شک ہم نے ان کی گردنوں میں طوق ڈالے ہیں اور وہ ٹھوڑیوں تک پہنچ گئے ہیں تو وہ جکڑے ہوئے ہیں۔
9. اور ہم نے ان کے آگے ایک پردہ بنایا اور ان کے پیچھے ایک پردہ پس ہم نے انہیں ڈھانپ دیا تو وہ دیکھتے نہ تھے۔
10. اور تم ان کو ڈراؤ یا نہ ڈراؤ یکساں ہے – وہ ایمان نہیں لاتے۔
11. تم صرف اس کو ڈراتے ہو جو ذکر کی پیروی کرتا ہے اور رحمٰن سے غائبانہ ڈرتا ہے تو اسے بخشش اور اجر عظیم کی خوشخبری سنا دو۔
12. بے شک ہم مردوں کو زندہ کرتے ہیں اور جو کچھ وہ آگے کرتے ہیں اور ان کے نشانات لکھتے ہیں اور ہم نے ہر چیز کو صاف صاف لکھ رکھا ہے۔
13. اور ان کو بستی والوں کی مثال بیان کرو جب اس کے پاس رسول آئے۔
14. جب ہم نے ان کی طرف دو بھیجے تو انہوں نے ان کو جھٹلایا اور تیسرے سے ہمیں تقویت ملی اور انہوں نے کہا کہ ہم تمہاری طرف بھیجے گئے ہیں۔
15. انہوں نے کہا کہ تم ہمارے جیسے انسان ہو اور رحمٰن نے کچھ نہیں اتارا تو صرف جھوٹ بولتا ہے۔
16. انہوں نے کہا کہ ہمارا رب جانتا ہے کہ ہم تمہاری طرف بھیجے گئے ہیں۔
17. اور ہمارے ذمہ صرف واضح پیغام ہے۔
18. انہوں نے کہا کہ ہم نے تم سے پرہیز کیا اگر تم باز نہ آئے تو ہم تمہیں ضرور سنگسار کر دیں گے اور ہماری طرف سے دردناک عذاب تمہیں چھو لے گا۔
19. انہوں نے کہا، “آپ کے پرندے آپ کے ساتھ ہیں، اگر آپ کو یاد ہے، “بلکہ آپ اسراف ہیں”
20. اور شہر کے سب سے دور سے ایک آدمی دوڑتا ہوا آیا اس نے کہا اے میری قوم رسولوں کی پیروی کرو۔
21. ان لوگوں کی پیروی کرو جو تم سے اجر نہیں مانگتے اور وہ ہدایت یافتہ ہیں۔
22. میں اس کی عبادت کیوں نہ کروں جس نے مجھے پیدا کیا اور اسی کی طرف تم لوٹائے جاؤ گے؟
23. کیا میں اس کے سوا معبود بنا لوں اگر رحمٰن مجھے کوئی نقصان پہنچائے تو ان کی سفارش میرے کام نہ آئے گی اور نہ وہ مجھے بچا سکیں گے؟
24. پھر میں صریح گمراہی میں ہوں۔
25. میں تمہارے رب پر ایمان لایا، تو سنو
26. کہا گیا کہ جنت میں داخل ہو جاؤ اس نے کہا کاش میری قوم کو معلوم ہوتا۔
27. کیونکہ میرے رب نے مجھے بخش دیا اور مجھے عزت داروں میں سے کر دیا۔
28. اور ہم نے اس کے بعد اس کی قوم پر آسمان سے کوئی لشکر نہیں اتارا اور نہ ہی اتارا
29. اگر یہ ایک ہی پکار ہے تو وہ خاموش ہو جائیں گے۔
30. بندوں پر کیا افسوس ہے کہ ان کے پاس کوئی رسول نہیں آتا لیکن وہ اس کا مذاق اڑاتے ہیں۔
31. کیا انہوں نے نہیں دیکھا کہ ہم نے ان سے پہلے کتنی نسلوں کو ہلاک کر دیا ہے اور وہ ان کی طرف لوٹ کر نہیں آئیں گے؟
32. اور بیشک یہ سب ہمارے پاس موجود ہیں۔
33. اور ان کے لیے ایک نشانی مردہ زمین ہے جسے ہم نے زندہ کیا اور اس سے غلہ نکالا اور وہ اسی میں سے کھاتے ہیں۔
34. اور ہم نے اس میں کھجوروں اور انگوروں کے باغات لگائے اور اس میں چشمے جاری کئے۔
35. تاکہ وہ اس کا پھل کھائیں اور جو ان کے ہاتھوں نے بنایا ہے کیا وہ شکر نہیں کرتے؟
36. پاک ہے وہ ذات جس نے تمام جوڑے پیدا کیے ان چیزوں سے جو زمین اگاتی ہے اور خود ان سے اور ان چیزوں سے جن کو وہ نہیں جانتے
37. اور ان کے لیے ایک نشانی رات ہے جس سے ہم دن کو الگ کرتے ہیں اور دیکھو وہ اندھیرے میں ہیں۔
38. اور سورج اپنی آرام گاہ کی طرف دوڑتا ہے، یہ غالب، سب کچھ جاننے والے کا فرمان ہے۔
39. اور ہم نے چاند کو منزلیں مقرر کر دیں یہاں تک کہ وہ قدیم چاند جیسا ہو گیا۔
40. ضروری نہیں کہ سورج چاند کو آ جائے اور نہ ہی رات کا دن سے پہلے ہو اور وہ سب ایک مدار میں تیرتے ہیں۔
41. اور ان کے لیے ایک نشانی یہ ہے کہ ہم نے ان کی اولاد کو کشتی میں سوار کیا۔
42. اور ہم نے ان کے لیے ایسی ہی چیز پیدا کی جس پر وہ سوار ہوتے ہیں۔
43. اور اگر ہم چاہیں تو ان کو غرق کر دیں تو نہ کوئی ان کو پکارنے والا ہو گا اور نہ ہی ان کو نجات ملے گی۔
44. سوائے ہماری طرف سے رحمت اور ایک وقت کے لیے لطف کے۔
45. اور جب ان سے کہا جاتا ہے کہ جو کچھ تمہارے آگے ہے اور جو تمہارے پیچھے ہے اس سے بچو تاکہ تم پر رحم کیا جائے۔
46. ​​اور ان کے پاس ان کے رب کی کوئی نشانی نہیں آتی مگر وہ اس سے منہ پھیر لیتے ہیں۔
47. اور جب ان سے کہا جاتا ہے کہ جو کچھ اللہ نے تمہیں دیا ہے اس میں سے خرچ کرو، تو کافر کہتے ہیں کہ جو لوگ ایمان لائے اسے کھلایا جائے گا، اگر اللہ نے چاہا تو اسے کھلایا جائے گا۔ صرف غلطی میں۔”
48. اور کہتے ہیں کہ اگر تم سچے ہو تو یہ وعدہ کب پورا ہو گا؟
49. انہیں صرف ایک ہی پکار نظر آتی ہے جو انہیں جھگڑتے ہوئے پکڑ لے گی۔
50. وہ وصیت نہیں کر سکتے اور نہ ہی اپنے گھر والوں کے پاس واپس جا سکتے ہیں۔
51. اور صور پھونکا گیا، اور دیکھو، وہ واقعات سے اپنے رب کی طرف اتر رہے تھے۔
52. انہوں نے کہا کہ افسوس جس نے ہمیں ہماری آرام گاہ سے اٹھایا یہ وہی ہے جس کا رحمان نے وعدہ کیا تھا اور رسول سچے تھے۔
53. اگر ایک ہی پکار ہے تو وہ سب ہمارے ساتھ موجود ہیں۔
54. آج کسی جان پر ذرا بھی ظلم نہیں کیا جائے گا اور تمہیں اس کے سوا کوئی بدلہ نہیں دیا جائے گا جو تم کیا کرتے تھے۔
55. بے شک جنت کے باشندے آج مصروف اور ثمر آور ہیں۔
56. وہ اور ان کی بیویاں سایہ میں تختوں پر تکیہ لگائے ہوئے ہیں۔
57. ان کے لیے اس میں میوہ ہے اور ان کے لیے وہ ہے جسے وہ پکارتے ہیں۔
58. امن، ایک مہربان رب کی طرف سے ایک لفظ
59. اور آج اپنے آپ کو الگ کر دو، اے مجرمو!
60. کیا میں نے تمہیں حکم نہیں دیا تھا کہ شیطان کی عبادت نہ کرو، وہ تمہارا کھلا دشمن ہے۔
61. اور یہ کہ میری عبادت کرو یہ سیدھا راستہ ہے۔
62. بے شک اس نے تم میں سے بہت سے پہاڑوں کو گمراہ کر دیا ہے؟

63. یہ وہ جہنم ہے جس کا تم سے وعدہ کیا گیا تھا۔
64. آج نماز پڑھو کیونکہ تم نے کفر کیا۔
65. آج ہم ان کے منہ پر مہر لگا دیتے ہیں اور ان کے ہاتھ ہم سے باتیں کرتے ہیں اور ان کے پاؤں اس کی گواہی دیتے ہیں جو وہ کماتے تھے۔
66. اور اگر ہم چاہتے تو اس کو ان کی آنکھوں پر لگا دیتے، لیکن وہ راستے سے آگے کیسے دیکھتے ہیں؟
67. اور اگر ہم چاہتے تو ان کو اسی مقام پر رکھ دیتے جس پر وہ ہیں، لیکن نہ وہ آگے بڑھ سکتے تھے اور نہ ہی واپس لوٹ سکتے تھے۔
68. اور جس کو ہم زندہ کرتے ہیں، کیا وہ نہیں سمجھتے؟
69. اور ہم نے اسے شاعری نہیں سکھائی اور نہ ہی وہ کچھ ہے جو اس کے لیے مناسب ہو، یہ ایک نصیحت اور واضح قرآن ہے۔
70. تاکہ جو زندہ ہو اسے ڈرائے اور کافروں کے خلاف بات کی تصدیق کرے۔
71. کیا انہوں نے نہیں دیکھا کہ ہم نے ان کے لیے اپنے ہاتھوں کی بنائی ہوئی چیزوں میں سے مویشی پیدا کیے اور وہ ان کے مالک ہیں۔
72. اور ہم نے اسے ان کے لیے ذلیل کر دیا اور اس میں سے وہ سواری کرتے ہیں اور اسی سے کھاتے ہیں۔
73. اور ان کے لیے اس میں فائدے اور مشروبات ہیں تو کیا وہ شکر نہیں کرتے؟
74. اور انہوں نے اللہ کے سوا معبود بنا لیے ہیں تاکہ ان کی مدد کی جائے۔
75. وہ ان کی مدد نہیں کر سکیں گے جب تک کہ ان کے پاس سپاہی تیار ہوں۔
76. پس ان کی باتوں سے غم نہ کھاؤ، ہم جانتے ہیں کہ وہ کیا چھپاتے ہیں اور کیا ظاہر کرتے ہیں۔
77. کیا انسان نے نہیں دیکھا کہ ہم نے اسے نطفے سے پیدا کیا ہے، پھر وہ کھلا مخالف ہے۔
78. اور اس نے ہمیں ایک مثال دی اور اپنی تخلیق کو بھول گیا، اس نے کہا کہ ہڈیوں کو کون زندہ کر سکتا ہے جب وہ بوسیدہ ہو جائیں؟
79. کہہ دو کہ وہی ہے جس نے اسے پہلی بار زندہ کیا اور وہ تمام مخلوقات کو جانتا ہے۔
80. وہ جس نے تمہارے لیے ہرے درخت سے آگ پیدا کی، پس جب تم اس سے آگ جلاتے ہو۔
81. کیا وہ جس نے آسمانوں اور زمین کو پیدا کیا وہ ان جیسا کوئی پیدا کرنے پر قادر نہیں ہے، وہ سب کچھ جاننے والا ہے؟
82۔ اس کا حکم یہ ہے کہ جب وہ کسی چیز کا ارادہ کرے تو اسے کہے کہ ہو جا اور وہ ہو جاتی ہے۔
83. پاک ہے وہ جس کے ہاتھ میں ہر چیز کی بادشاہی ہے اور اسی کی طرف تم لوٹائے جاؤ گے۔

सूरह यासीन का अरबी पाठ

لَىٰ صِرَاطٍ مُّسْتَقِيمٍ

क्रमांक आयत अरबी पाठ
1. यासीन يس
2. वाल-कुरान्निल-हकीम وَالْقُرْآنِ الْحَكِيمِ
3. इन्नका लमिनल मुर्सलीन إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ
4. अला सिरातिम मुस्तकीम</td> عَ

सूरह यासीन का हिन्दी अनुवाद

यासीन। शक्तिशाली कुरान की कसम। निश्चय ही तू उन प्रेरितों में से है, जो सीधे मार्ग पर हैं।

सूरह यासीन की व्याख्या

सूरह यासीन कुरान शरीफ की एक प्रमुख और बहुत ही महत्वपूर्ण सूरह है। इस सूरह में सूरह यासीन के महत्व और सूरह यासीन की खूबियों पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह सूरह मक्का की है और इसमें कुल 83 आयतें हैं। सूरह यासीन में ईश्वरीय एकता, पैगम्बरों के आगमन, मौत और पुनरुत्थान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है। इस सूरह का उद्देश्य मुसलमानों को मार्गदर्शन देना और उन्हें अल्लाह के दिव्य संदेश से अवगत कराना है।

सूरह यासीन की फज़ीलत और दुआएँ

सूरह यासीन को कुरान की सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण सूरहों में से एक माना जाता है। इस सूरह की दुआ का बहुत महत्व है और इसे पढ़ने से कई लाभ प्राप्त होते हैं। यासीन की दुआ से मुसलमानों को धार्मिक शांति, आत्मिक शक्ति और मनोबल प्राप्त होता है।

यासीन की दुआ का महत्व

यासीन सूरह की फज़ीलत इसलिए है क्योंकि इस दुआ को पढ़ने से मुसलमानों को कई लाभ प्राप्त होते हैं। यह दुआ आध्यात्मिक शक्ति और धार्मिक शांति प्रदान करती है, जिससे व्यक्ति को अपने जीवन में स्थिरता और संतुलन प्राप्त होता है।

यासीन की दुआ के फायदे

यासीन की दुआ के फायदे में पापों की क्षमा, जीवन में बरकत और मृत्यु के समय मदद शामिल हैं। इस दुआ का पालन करने से मुसलमान अपने जीवन में अनेक आध्यात्मिक और धार्मिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह दुआ उन्हें मार्गदर्शन प्रदान करती है और उनका मनोबल बढ़ाती है।

निष्कर्ष

सूरह यासीन कुरान की सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली सूरहों में से एक है। इस सूरह का पाठ करने से आप मुसलमानों को धार्मिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और मनोबल प्राप्त कर सकते हैं। सूरह यासीन का हिंदी, अंग्रेजी और अरबी में अनुवाद उपलब्ध है, जिसे आप पढ़कर इस शक्तिशाली सूरह का लाभ उठा सकते हैं।

सूरह यासीन की दुआएं भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और इनका पालन करने से कई आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। इनमें पापों की क्षमा, जीवन में बरकत और मृत्यु के समय मदद शामिल हैं। इस सूरह का अभ्यास करके आप अपने जीवन में शांति और भलाई प्राप्त कर सकते हैं।

सूरह यासीन कुरान की सबसे शक्तिशाली सूरहों में से एक है और इसका पाठ करना आपके जीवन में बहुत लाभकारी होगा। इस सूरह का अनुसरण करके आप अपने आध्यात्मिक जीवन को मजबूत कर सकते हैं और अपने मार्ग पर अग्रसर हो सकते हैं।

FAQ

क्या सूरह यासीन कुरान की सबसे महत्वपूर्ण सूरह है?

हाँ, सूरह यासीन को कुरान की सबसे महत्वपूर्ण और शक्तिशाली सूरहों में से एक माना जाता है। इस सूरह में ईश्वरीय एकता, पैगम्बरों के आगमन, मौत और पुनरुत्थान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई है।

सूरह यासीन का क्या उद्देश्य है?

सूरह यासीन का उद्देश्य मुसलमानों को मार्गदर्शन देना और उन्हें अल्लाह के दिव्य संदेश से अवगत कराना है। यह सूरह मुसलमानों को धार्मिक शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और मनोबल प्रदान करती है।

सूरह यासीन का हिंदी और अरबी में क्या अनुवाद है?

सूरह यासीन का अरबी पाठ, हिंदी अनुवाद और व्याख्या यहां दी गई है। अरबी पाठ में सूरह की आयतों को मूल रूप में प्रस्तुत किया गया है, जबकि हिंदी अनुवाद में सूरह का भावार्थ दिया गया है।

सरह यासीन की दुआ का क्या महत्व है?

सूरह यासीन की दुआ का बहुत महत्व है और इसे पढ़ने से कई लाभ प्राप्त होते हैं। यह दुआ मुसलमानों को धार्मिक शांति, आत्मिक शक्ति और मनोबल प्रदान करती है। इस दुआ के अन्य फायदे में पापों की क्षमा, जीवन में बरकत और मृत्यु के समय मदद शामिल हैं।

सूरह यासीन की कुछ अन्य विशेषताएं क्या हैं?

सूरह यासीन में कुल 83 आयतें हैं और यह मक्का की सूरह है। इस सूरह को कुरान की सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण सूरहों में से एक माना जाता है। सूरह यासीन की विभिन्न विशेषताओं और महत्व पर इसकी व्याख्या में चर्चा की गई है।

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