Youme Ashura Ki Dua: यूमे आशूरा, या 10 मुहर्रम, एक बेहद फ़ज़ीलत वाला दिन है! इस दिन हमें आशूरा की दुआ जरूर पढ़नी चाहिए। Youme और Shabe Ashura में हमें अल्लाह को के लिए सबसे ज्यादा इबादत करनी चाहिए जो हम कर सकते हैं! क्योंकि यौमे अशुरा के दिन सभी दुआए क़ुबूल की जाती है। आशूरा की दुआ पढ़ने से पहले, अशुरा की नमाज़ भी पढ़ी जाती है, जिसका तरीका ये है निचे दी गई है, उससे पहले अशुरा की नमाज़ का तरीका जान ले। यौमे अशुरा की नमाज़ की नियत और नमाज़ का तरीका हिंदी में।
Ashura की नमाज़ की नियत का तरीका
नियत की मैंने दो रकात नफ्ल नमाज़, वास्ते अल्लाह तआला के, मुह मेरा काबा शरीफ की तरफ। और अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बाँध ले।दोनों रकअत में सूरह फातिहा के बाद दस बार सूरह इखलास पढ़ना है, और फिर नमाज़ खत्म होने के बाद आपको एक बार अयातुल कुरसी, नौ बार दुरूद इब्राहिम पढ़ कर उसके बाद अशूरा की दुआ पढ़नी है, जो इस निचे दी गई है।
यौमे अशुरा की दुआ – Youme Ashura Ki Dua In Hindi
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
या क़ाबि ल तौबति आदम यौम आशूराअ
या फारिजा करबी जिन्नूनी यौम आशूराअ
या जामी अ शमली याक़ूब यौम आशूराअ
या सामी अ दाअवती मूसा व् हारून यौम आशूराअ
या मुगि स इब्राहिम मिनन्नारी यौम आशूराअ
या राफ़ीअ इदरीस इलस्समाई यौम आशूराअ
या मुजी ब दावती सालिहिन फिन्नाकती यौम आशूराअ
या नासि र सय्येदेना मुहम्मदिन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यौम आशूराअ
या रहमान नददुनिया वल आखिरती व् रहिमहुमा सल्ली अला सय्येदेना मुहम्मदिंव व् अला आली सय्येदेना मुहम्मदिंव व सल्ली अला जमीईल अम्बियाई वल मुरसलीन वक़ज़ी हाजातीना फिददुनिया वल आखिरती व अतिल उम रना फी ताअतीक व मुहब्बतिक व रेदाक व अहयेना हयातन तैय्यबतओं वतवफ़्फ़ना अललईमानी वल इस्लामी बिरहमतिक या अरहमर्राहिमीन ।
मुहर्रमुल हराम महीने के 2 फ़ज़ाइल
एक शख़्स हुजूर नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैवसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुवा और कर अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैवसल्लम ! रमज़ान के इलावा मैं किस महीने में रोजे रखू ?
नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : अगर तुम ने रमज़ान के बाद किसी महीने के रोजे रखने हों तो मुहर्रम के रोजे Muharram Ke Roze रखो कि येह अल्लाह पाक का महीना है , इस महीने में एक दिन है जिस में अल्लाह पाक ने एक क़ौम की तौबा क़बूल फ़रमाई और दूसरों की तौबा भी क़बूल फ़रमाएगा ।
नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : माहे रमज़ान के बा’द सब से अफ़ज़ल रोजे अल्लाह पाक के महीने मुहर्रम के रोजे Muharram Ke Roze हैं और फ़र्ज़ नमाज़ के बाद सब से अफ़्ज़ल नमाज़ रात की नमाज़ है ।
क्या माहे मुहर्रमुल हराम में रोना धोना चाहिए?
ये मुख्तसर सी तहरीर उन मुक़रिरीन व अवाम दोनो के लिये है जो झूटे वाकियात को बार बार बयान कर के लोगों को रोने पर मजबूर करते हैं और गमे हुसैन मैं जबरदस्ती रोने को सवाब समझते हैं ।
मुझे रोना नही आता तो क्या कोई ज़बरदस्ती है ?
जी जी बिल्कुल आप को रोना ही पड़ेगा , अगर नही रोये तो इस का मतलब आप को अहले बैत से मुहब्बत नहीं है ।
आप नहीं रो सकते तो हमारे पास आयें हम आप को ऐसे किस्से सुनायेंगे जिन्हें सुनने के बाद आप अपने आँसू को रोक नहीं पायेंगे और नहीं तो कुछ भी करें लेकिन रोयें ।
माहे मुहर्रम Mahe Muharram को कुछ लोगों ने माहे मातम समझ लिया है । रोना ज़रूरी है , शादी नहीं कर सकते , मुबारकबाद नहीं देनी है , गोश्त नहीं खाना है और फुलाँ नहीं छूना है …
ये सब क्या ड्रामा है ? ये ज़बरदस्ती रोने धोने का ड्रामा करने वालो को जान लेना चाहिए के किसी प्यारे की वफात पर कतई तौर पर रोना आ जाना मुहब्बत है और रहम के जज़बे का नतीजा है और ये बिल्कुल दुरुस्त और जाइज़ है लेकिन हर साल रोने रुलाने के लिए बैठ जाना एक अजीब हरकत है । इस दुनिया में हर किसी की बहन भाई , माँ बाप , अवलाद और रिश्तेदार फौत होते रहते हैं , मुर्शिद वा उस्ताद फौत होते रहते हैं , इन सब के लिये इसाल -ए- सवाब का सिलसिला जिन्दगी भर जारी रहता है मगर साल के साल रोने का धंधा नहीं किया जाता ।
हज़रते अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु रमज़ान में शहीद किये गये , हज़रते उसमान गनी रदिअल्लाहु तआला अन्हु को कई दिनों तक उन के घर में महसूर कर के और उन का पानी बन्द Pani Band करके प्यास की हालत में शहीद कर दिया गया , हज़रते उमर फारूक रदिअल्लाहु तआला अन्हु को मस्जिदे नबवी में नमाज़ पढ़ते हुये छुरा मार कर शहीद कर जुल्म की ये दास्तानें एक से बढ़ कर एक है । इन में से किसी एक से मौके पर हम साल के साल ना मातम करते हैं और ना रोते हैं ।
चलें सब को छोड़ दें , अहादीस में आता है कि दुनिया का सब से तारीक दिन वो था जिस दिन रहमत -ए आलम इस दुनिया से रुख्सत हुये , अगर हर साल गम मनाना और रोना रुलाना जाइज़ Rona Rulana Jayez होता तो अल्लाह की अज़मत की क़सम रबीउल अव्वल के महीने में हर साल पूरी दुनिया में कोहराम बरपा हो जाया करता ।
अब हम हर साल मीलाद -ए- मुस्तफा की खुशी तो ज़रूर मनाते हैं मगर विसाल की वजह से ना मातम करते हैं और ना तो सिर्फ रोते हैं ।
जो लोग अहले सुन्नत पर ये इल्जाम लगाते हैं कि ये इमाम हुसैन Imam Hussain से मुहब्बत नहीं करते , उन्हें गौर करना चाहिये कि अहले सुन्नत की हुजूर -ए- अकरम के साथ मुहब्बत को तो कोई माँ का लाल चेलेन्ज नहीं कर सकता , आखिर हुजूर के विसाल के मौके पर हम क्यों नहीं रोते ? यहाँ से बात निखर कर सामने आ जाती है कि हर साल रोने धोने बैठ जाना एक गौर शरई हरकत है और जो लोग सुन्नी कहलाने के बावजूद हर साल ये धंधा करते हैं उन्हें रवाफिज़ का टीका लग चुका है ।
अल्लाह के प्यारों का तरीक़ा तो ये है कि प्यारों की एन वफात के दिन भी सब्रो तहम्मुल से काम लेते हैं और आँसुओं पर भी कंट्रोल रखने की पूरी कोशिश करते हैं , हाँ अलबत्ता बे इख्तियार आँसू निकल आना एक अलग बात है । अगर किसी को इत्तिफाकिया माहे मोहर्रम Mahe Muharram में यादें हुसैन, यादें कर्बला Karbala या कर्बला बयान सुनकर रोना आ जाये तो ऐसे रोने में कोई कबाहत नहीं लेकिन तकल्लुफ के साथ जान बूझ कर रोने धोने बैठ जाना और इसे गमे हुसैन Hussain में रोना समझ कर सवाब की उम्मीद रखना बिल्कुल गलत है ।
अल्लाहुम्मा बीइज़्ज़िल हसनी व् अखीही व उम्मीही व् अबिहि व जद्दीही व् बनिहि फर्रीज अन्ना मानहनू फ़ीहि ।
(फिर 7 मर्तबा ये दुआ पढ़े।)
Youme Ashura Ki Dua के बाद यह पढ़े।
- सुब्हानल्लाही मिलअलमिज़ानी व् मुन्तहलइल्मी व् मबलग़ र्रेरदा व ज़िन तल अर्शी लामल जाअ वला मन जाअ मिनल्लाही इल्ला इलैहि।
- सुब्हानल्लाही अददश शफई वल वितरि व अदद कलीमातिल्लाहित्तामती कुल्लीहा नसअलुकस्सलामत बिरहमतिक या अरहमर्राहिमीन।
- व हुव हसबुना व नैमल वकील।
- नैमल मौला व नैमन्नसिर।
- वलाहौला वला कुव्वत इल्ला बिल्लाहिल अलियिल अज़ीम ।
- व सल्लल्लाहु तआला अला सय्येदेना मुहम्मदिंव व्अला आलिहि वसहबिहि वअलल मुअमिनीना वल मुअमिनाती वल मुस्लिमीन वल मुस्लिमाति
- अदद ज़ररातील वुजुदी व् अदद मालुमातील्लाही वलहम्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन।
- आमीन । सुम्मा आमीन।